परिचय
भारत में जलवायु परिवर्तन आज के समय की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। यह एक ऐसी समस्या है जो न केवल भारत को प्रभावित कर रही है, बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा बनी हुई है। भारत जैसा देश, जिसकी अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण मुख्य रूप से कृषि और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से विशेष रूप से संवेदनशील है। इस लेख में हम जलवायु परिवर्तन के कारणों, इसके भारत पर प्रभाव, और इससे निपटने के लिए संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
जलवायु परिवर्तन क्या है?
जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य पृथ्वी के वायुमंडल में दीर्घकालिक तापमान और मौसमी पैटर्न में परिवर्तन से है। यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानव गतिविधियों, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, के कारण होता है। वैश्विक तापमान में वृद्धि, बर्फ के पिघलने, समुद्र स्तर के बढ़ने और चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ने जैसी घटनाएँ जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत हैं।
भारत में जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारण
- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन:
कोयला, तेल, और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। भारत, एक तेजी से औद्योगिकीकरण करने वाला देश, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। - वनों की कटाई:
भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार के कारण वनों की कटाई हो रही है। पेड़ों की कमी से कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण घटता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है। - औद्योगिकीकरण और शहरीकरण:
भारत के प्रमुख शहरों में औद्योगिक गतिविधियों और बढ़ते वाहनों की संख्या ने वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। यह जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। - कृषि गतिविधियाँ:
पारंपरिक कृषि पद्धतियों, जैसे चावल की खेती और मवेशी पालन, से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। - प्लास्टिक और कचरा प्रबंधन की समस्याएँ:
प्लास्टिक कचरे के बढ़ते उपयोग और उसके अनुचित निपटान से न केवल पर्यावरणीय प्रदूषण होता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन में भी योगदान मिलता है।
भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- कृषि पर प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन से अनियमित वर्षा और सूखा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जो फसलों की उत्पादकता को प्रभावित करती हैं।
- धान और गेहूँ जैसी मुख्य फसलें, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा का आधार हैं, तापमान में वृद्धि और जल संकट के कारण संकट में हैं।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- बढ़ता तापमान और वायु प्रदूषण श्वसन संबंधी बीमारियों और हृदय रोगों को बढ़ावा देता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ अधिक फैल रही हैं।
- जल संकट:
- भारत में जल संकट की समस्या गंभीर होती जा रही है। हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने और मानसून में अनियमितता से नदियों का जल स्तर प्रभावित हो रहा है।
- भूजल के अत्यधिक दोहन और सूखे की घटनाओं ने देश के कई हिस्सों में जल संकट को और बढ़ा दिया है।
- समुद्री तटों पर प्रभाव:
- समुद्र स्तर के बढ़ने के कारण भारत के समुद्री तटीय क्षेत्र, जैसे पश्चिम बंगाल, गुजरात, और केरल, पर बाढ़ और तटीय कटाव का खतरा बढ़ गया है।
- यह मछली पालन और तटीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रहा है।
- प्राकृतिक आपदाएँ:
- भारत में बाढ़, सूखा, और चक्रवात जैसे प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएँ बढ़ रही हैं। उदाहरण के लिए, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को बार-बार चक्रवातों का सामना करना पड़ता है।
- इन आपदाओं के कारण बड़े पैमाने पर जनहानि और आर्थिक नुकसान होता है।

भारत में जलवायु परिवर्तन के समाधान: भारत का दृष्टिकोण
- नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा:
- भारत सरकार ने सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें शुरू की हैं।
- “राष्ट्रीय सौर मिशन” के तहत भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
- वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण:
- वनों को बचाने और पुनर्वनीकरण के लिए “राष्ट्रीय हरित भारत मिशन” जैसी योजनाएँ लागू की गई हैं।
- पेड़ लगाने और वनों की रक्षा करने से कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में मदद मिलती है।
- स्वच्छ भारत अभियान:
- इस पहल का उद्देश्य कचरा प्रबंधन को सुधारना और स्वच्छता को बढ़ावा देना है। यह जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक है।
- सतत कृषि प्रथाएँ:
- किसानों को जैविक खेती और जल-संरक्षण तकनीकों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- आधुनिक कृषि उपकरण और सिंचाई प्रणालियाँ जल और ऊर्जा की बचत करती हैं।
- जनजागरूकता:
- जलवायु परिवर्तन के प्रति लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। शिक्षा और मीडिया के माध्यम से पर्यावरणीय मुद्दों की जानकारी को प्रसारित किया जाना चाहिए।
- वैश्विक सहयोग:
- भारत पेरिस समझौते और COP26 जैसे वैश्विक मंचों का सक्रिय भागीदार है। यह सुनिश्चित करता है कि भारत जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग में भाग ले।
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क्या हम पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं?
हालांकि भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण, ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट, और पूरे देश में ऊर्जा खपत जैसे मुद्दे निरंतर चिंता का विषय हैं।
- सरकारी प्रयास:
सरकार को कड़े पर्यावरणीय कानून बनाने और लागू करने की आवश्यकता है।
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देकर निजी वाहनों के उपयोग को कम करना चाहिए। - व्यक्तिगत भूमिका:
प्रत्येक नागरिक को अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाने चाहिए, जैसे ऊर्जा की बचत, पानी का संरक्षण, और प्लास्टिक का कम उपयोग।
निष्कर्ष
भारत में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती है, लेकिन इसे अवसर में बदला जा सकता है यदि हम पर्यावरण के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाएँ। सरकार, उद्योगों, और आम नागरिकों को मिलकर काम करना होगा ताकि हम इस समस्या का प्रभावी समाधान निकाल सकें। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भारत न केवल अपने देश को सशक्त बना सकता है, बल्कि वैश्विक नेतृत्व भी कर सकता है।